कोरोना: क्या ये संक्रमण फिर बन सकता है लोगों के लिए आफत?

by Mahima Bhatnagar
Coronavirus

कुछ लोग दूसरों की तुलना में ज़्यादा बीमार क्यों लगते हैं? क्या ये हर सर्दियों में वापस लौट आएगा? क्या वैक्सीन से इस बीमारी का इलाज हो पाएगा? क्या इम्युनिटी सर्टिफ़िकेट वाले लोग काम पर वापस लौट सकेंगे? लंबे समय तक हम इस वायरस का मुक़ाबला कैसे कर पाएंगे? कोरोना वायरस के बारे में पूछे जा रहे ज़्यादातर महत्वपूर्ण सवालों में कुछ का सीधा संबंध हमारे इम्यून सिस्टम से है। दिक्कत ये है कि हमारे पास इसके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।

कोरोना वायरस कब आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा?

हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानी हमारा इम्यून सिस्टम किसी संक्रमण के ख़िलाफ़ हमारी रक्षा करता है। इसके दो हिस्से होते हैं। पहला हिस्सा तो हमेशा मुस्तैद रहता है। जैसे ही पता चलता है कि शरीर में किसी घुसपैठिये ने धावा बोला है, पहला हिस्सा बिना देरी किए झट से एक्शन में आ जाता है। इसे स्वाभाविक प्रतिरोधक क्षमता भी कहते हैं. जब ये काम करता है तो शरीर में कुछ रसायनों का स्राव होता है।

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इससे हमारा शरीर तपने लगता है और व्हाइट ब्लड सेल्स (श्वेत रक्त कोशिकाएं) प्रभावित कोशिकाओं को नष्ट कर देती है। लेकिन इम्यून सिस्टम के काम करने के इस तरीके का कोरोना वायरस से कोई सीधा संबंध नहीं है। ये सीखेगा नहीं और ये आपको कोरोना वायरस से नहीं बचाएगा। दरअसल, आपको एक ऐसी प्रतिरोधक क्षमता चाहिए है जो ज़रूरत के हिसाब से ढल सके।

इस प्रक्रिया में वो कोशिकाएं शामिल होती हैं जो ख़ास तरह की एंटीबॉडीज़ का निर्माण करती हैं. ये एंटीबॉडीज़ वायरस को रोकने का काम करती हैं, और टी-सेल्स वायरस से संक्रमित होने वाली कोशिकाओं पर हमला शुरू कर देता है। इम्यून सिस्टम में इसे ‘सेल्युलर रिस्पॉन्स’ कहते हैं यानी जब शरीर में किसी बीमार कोशिका को दूसरी कोशिकाएं हरा दें। इसमें वक़्त लगता है। रिसर्च से ये पता चला है कि कोरोना वायरस को टारगेट करने में सक्षम एंटीबॉडीज़ के बनने में लगभग दस दिन लगते हैं। वैसे मरीज जो सबसे ज़्यादा बीमार होते हैं, उनमें सबसे ताक़तवर इम्यून सिस्टम डेवलप होता है।

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अगर हमारा ‘एडैप्टिव इम्यून रिस्पॉन्स’ यानी ऐसी प्रतिरोधक क्षमता जो ज़रूरत के हिसाब से ढल सके, काफी ताक़तवर हो तो संक्रमण ज़्यादा दिनों तक बना रह सकता है और ये हमें भविष्य में होने वाले संक्रमण से भी बचाता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनमें कोरोना संक्रमण के हल्के लक्षण हैं या जरा भी नहीं हैं। ऐसे लोगों में पर्याप्त रूप से ‘एडैप्टिव इम्यून रिस्पॉन्स’ विकसित हो पाएगा या नहीं, इस बारे में फ़िलहाल ज़्यादा जानकारी नहीं उपलब्ध नहीं है।

इम्यूनिटी कब तक बनी रहेगी?

इम्यून सिस्टम की भी एक यादाश्त होती है, बिलकुल हमारी तरह ही, उसे कुछ संक्रमण अच्छे से याद रहते हैं लेकिन कुछ संक्रमण कों वो आदतन भुला भी देती है। मीज़ल्स या खसरा ऐसी बीमारी है जो लंबे समय तक याद रहती है. एक बार हो जाती है तो उम्र भर के लिए इम्यूनिटी दे जाती है। एमएमआर वैक्सीन में भी खसरे के कमज़ोर वर्ज़न की खुराक दी जाती है। हालांकि दूसरी कई ऐसी बीमारियां हैं जिन्हें हमारा इम्यून सिस्टम अक्सरहां भुला देता है।आपने देखा होगा कि एक सर्दी के मौसम में बच्चों को कई बार रेस्पिरेटरी सिंसिटिकल वायरस का संक्रमण (निमोनिया या फेफड़े में संक्रमण) कई बार हो जाता है।

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