56 साल की इस महिला वैज्ञानिक ने कोरोना वायरस की पहले ही कर ली थी खोज

by Mahima Bhatnagar
Dr june almeida women scientist

नई दिल्ली। कोरोना वायरस जिसने आजकल लोगों को घरों में कैद होने पर मजबूर कर दिया है। जिसके कारण दुनियाभर में अब कर 1.65 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। 24 लाख से ज्यादा लोग बीमार हैं। जिसका इलाज अब तक कोई नहीं खोज पाया है। उस वायरस की पहले ही खोज हो चुकी थी। जानकर हैरानी हुई ना। लेकिन यही सच है।

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बात है 1964 की यानी आज से 56 साल पहले की। एक महिला वैज्ञानिक अपने इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप में देख रही थी। तभी उन्हें एक वायरस दिखा जो आकार में गोल था और उसके चारों तरफ कांटे निकले हुए थे। जैसे सूर्य का कोरोना। इसके बाद इस वायरस का नाम रखा गया कोरोना वायरस। इसे खोजने वाली महिला का नाम है डॉ. जून अल्मीडा।

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साधारण परिवार में जन्मीं, 16 की उम्र में स्कूल छोड़ा

डॉ. जून अल्मीडा ने जिस समय कोरोना वायरस की खोज की थी, तब उनकी उम्र 34 साल की थी। 1930 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर के उत्तर-पूर्व में स्थित एक बस्ती में रहने वाले बेहद साधारण परिवार में जून का जन्म हुआ। अल्मीडा के पिता बस ड्राइवर थे। घर आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से जून अल्मीडा को 16 साल की उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा था।

कम उम्र में बन गई थीं लैब टेक्नीशियन

16 साल की उम्र में ही उन्हें ग्लासगो रॉयल इन्फर्मरी में लैब टेक्नीशियन की नौकरी मिल गई। धीरे-धीरे काम में मन लगने लगा। फिर इसी को अपना करियर बना लिया। कुछ महीनों के बाद ज्यादा पैसे कमाने के लिए वे लंदन आईं और सेंट बार्थोलोमियूज हॉस्पिटल में बतौर लैब टेक्नीशियन काम करने लगीं।

कनाडा में मिली इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी टेक्नीशियन की पद

वर्ष 1954 में उन्होंने वेनेजुएला के कलाकार एनरीक अल्मीडा से शादी कर ली। इसके बाद दोनों कनाडा चले गए. इसके बाद टोरंटो शहर के ओंटारियो कैंसर इंस्टीट्यूट में जून अल्मीडा को लैब टेक्नीशियन से ऊपर का पद मिला। उन्हें इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी टेक्नीशियन बनाया गया। ब्रिटेन में उनके काम की अहमियत को समझा गया। 1964 में लंदन के सेंट थॉमस मेडिकल स्कूल ने उन्हें नौकरी का ऑफर दिया।

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लंदन आने के बाद डॉ. जून अल्मीडा ने डॉ. डेविड टायरेल के साथ रिसर्च करना शुरू किया। उन दिनों यूके के विल्टशायर इलाके के सेलिस्बरी क्षेत्र में डॉ. टायरेल और उनकी टीम सामान्य सर्दी-जुकाम पर शोध ककर रही थी। डॉ. टायरेल ने बी-814 नाम के फ्लू जैसे वायरस के सैंपल सर्दी-जुकाम से पीड़ित लोगों से जमा किए थे। लेकिन प्रयोगशाला में उसे कल्टीवेट करने में काफी दिक्कत आ रही थी।

पहला शोधपत्र खारिज भी कर दिया गया

परेशान डॉ. टायरेल ने ये सैंपल जांचने के लिए जून अल्मीडा के पास भेजे। अल्मीडा ने वायरस की इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप से तस्वीर निकाली। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी बताया कि हमें दो एक जैसे वायरस मिले हैं। पहला मुर्गे के ब्रोकांइटिस में और दूसरा चूहे के लिवर में। उन्होंने एक शोधपत्र भी लिखा, लेकिन वह रिजेक्ट हो गया। अन्य वैज्ञानिकों ने कहा कि तस्वीरे बेहद धुंधली हैं।

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लेकिन, डॉ. अल्मीडा और डॉ. टायरेल को पता था कि वो एक प्रजाति के वायरस के साथ काम कर रहे हैं। फिर इसी दौरान एक दिन अल्मीडा ने कोरोना वायरस को खोजा। सूर्य के कोरोना की तरह कंटीला और गोल। उस दिन इस वायरस का नाम रखा गया कोरोना वायरस। ये बात थी साल 1964 की। उस समय कहा गया था कि ये वायरस इनफ्लूएंजा की तरह दिखता तो है, पर ये वो नहीं, बल्कि उससे कुछ अलग है।

1985 में योगा टीचर बन गईं, दूसरी शादी भी की

1985 तक डॉ. जून अल्मीडा बेहद सक्रिय रहीं। दुनियाभर के वैज्ञानिकों की मदद करती रहीं. एंटीक्स पर काम करने लगीं। इसी बीच उन्होंने दूसरी बार एक रिटायर्ड वायरोलॉजिस्ट फिलिप गार्डनर से शादी की। डॉ. जून अल्मीडा का निधन 2007 में 77 साल की उम्र में हुआ। लेकिन उससे पहले वो सेंट थॉमस में बतौर सलाहकार वैज्ञानिक काम करती रहीं। उन्होंने ही एड्स जैसी भयावह बीमारी करने वाले एचाआईवी वायरस की पहली हाई-क्वालिटी इमेज बनाने में मदद की थी। अब उनकी मृत्यु के 13 साल बाद दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस संक्रमण को समझने में उनकी रिसर्च की मदद मिल रही है।