पश्चिम बंगाल की राजनीति का कौन बनेगा बादशाह

by Mahima Bhatnagar
mamta Banerjee

एक राज्य जो जाना जाता था अपने औद्योगिक विकास के लिए ,एक राज्य जो जाना जाता है अपने संस्कृति और बौद्धिकता के लिए ,आज बात उसी राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव की करेंगे जिसमे हम आपको बंगाल में आज तक हुए चुनाव और सरकार के बारे में भी बताएँगे और बताएँगे कैसे एक आर्थिक तौर पर मजबूत राज्य जिसके बौद्धिकता का दुनिया कायल है प्रवासी मज़दूर देने वाला राज्य बन गया।

जैसा की हम जानते है की 1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तो बंगाल का विभाजन धार्मिक आधार के साथ हुआ। पश्चिमी भाग भारत में आया और इसका नाम पश्चिम बंगाल पड़ा, जबकि पूर्वी भाग पूर्वी बंगाल नाम से पाकिस्तान के एक प्रांत के रूप में शामिल हो गया बाद में इसका नाम बदलकर पूर्वी पाकिस्तान हो गया, और आगे 1971 में एक स्वतंत्र बांग्लादेश देश का जन्म हुआ।

इसे भी पढ़ें: कोरोना अपडेट: महाराष्ट्र में लॉकडाउन का काउंडाउन

आज़ादी के बाद बंगाल के प्रथम मुख्यमंत्री के तौर पर बिधान चंद्र रॉय ने सत्ता संभाली जो की कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे। इसके पहले आज़ादी के बाद और भारत के गणराज्य घोषित होने तक सरकार में दो मुखिया रहे पहले प्रफुल्ला चंद्र घोष और दूसरे बिधान चंद्र राय। इनको प्रांतीय विधानसभा का प्रीमियर या प्रधानमंत्री के तौर पर जाना गया और इनदोनो का कार्यकाल 15 अगस्त 1947 से लेकर 30 मार्च 1952 तक रहा।

31 मार्च 1952 को बिधान चंद्र राय बंगाल के विधानसभा के पहले मुख्यमंत्री बने जो की १ जुलाई १९६२ तक चला। बिधान रॉय को आधुनिक पश्चिम बंगाल का निर्माता माना जाता है। उनके जन्मदिन १ जुलाई को भारत मे ‘चिकित्सक दिवस’ के रूप मे मनाया जाता है। हालांकि बहुत से लोग उनको बंगाल का दूसरा मुख्यमंत्री मानते है और प्रफुल्ला चंद्र घोष को पहला लेकिन तकनिकी तौर पर विधानसभा के वो पहले मुख्यमंत्री थे।

इसे भी पढ़ें: फिर बेकाबू हुआ कोरोना, बढ़ी केस की संख्या

बिधान चंद्र रॉय के असामयिक मृत्यु के बाद उनकी जगह लेते है प्रफुल्ल चंद्र सेन जोकि 28 फ़रवरी 1967 तक मुख्यमंत्री रहते है। इसके बाद बंगाल में कांग्रेस का विभाजन होता है और गठबंधन सरकार का दौर आ जाता है। मुख्य रूप से बंगाल कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करते है इसके वाम विंग के अजय मुखर्जी , प्रणब मुखर्जी , सिद्धार्थ शंकर रे , एबीए ग़नी ख़ान चौधुरी , आभा मैती जो “सिंडीकेट” के पुराने रूढ़िवादी कुलीन वर्ग के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह के रूप में भी जाना जाता है और ये सब होता है 1966 खाद्य आंदोलन के दौरान प्रफुल्ल सेन सरकार की नीतियों के कारण। इसके फलस्वरूप अजोय कुमार मुख़र्जी वाम दल जिसमे CPI (M ) प्रमुख दल है के साथ मिलकर सरकार बनाते है और दो बार मुख्यमंत्री बनते है।

इसके बाद आता है 1972 का साल बांग्लादेश के निर्माण और पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में जीत के बाद हुए इस चुनाव में कांग्रेस R यानी की इंदिरा का धरा सीपीआई के साथ गठबंधन कर चुनाव में जीत कर सत्ता में वापसी करता है और मुख्यमंत्री बनते है सिद्धार्थ शंकर रे जिनको बंगाल में व्यस्थित चुनावी हिंसा का मास्टरमाइंड भी माना जाता है। इनके कार्यकाल में ही बंगाल में विपक्षियों को हिंसा से दबाने और ठिकाने लगाने का आरोप लगाना शुरू होता है जो की अब तक जारी है। इनका कार्यकाल ख़तम होता है 30 अप्रैल 1977 को।

इसे भी पढ़ें: कोरोना गाइडलाइंस: इन राज्यों में लग सकती है होली पर रोक

शायद बंगाल को पता नहीं था न ही देश को की इसके बाद जो बंगाल का मुख्यमंत्री बनेगा 23 साल से ज्यादा राज करेगा पर ऐसा ही होना था और होनी को कौन टाल सका है आज तक। 21 जून 1977 को मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होते है सीपीआई (M ) के ज्योति ज्योति बसु जो लगातार 14 मई 2001 तक मुख्यमंत्री के रूप में काबिज़ रहते है और अपना उतराधिकारी के तौर पर मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचर्य को बनाते है जो की 15 मई 2001 से 13 मई 2011 तक मुख्यमंत्री रहते है। ३४ साल के वाम शासन में माना जाता है की सरकार और पार्टी दोनों एक ही है। गुंडागर्दी ,चुनावी हिंसा ,भ्रष्टाचार और सिंडिकेट संगठित तौर पर आगे बढ़ा और मुख्य धारा का हिस्सा बना।

इसके बाद 34 साल के वाम शासन को ख़त्म कर माँ माटी मानुष के दम पर सत्ता पाती है ममता बनर्जी जो 20 मई 2011 को शपथ लेती है मुख्यमंत्री की। उम्मीदें बहुत होती है इस सरकार से की माँ माटी मानुष की ये सरकार गुंडागर्दी ,चुनावी हिंसा ,भ्रष्टाचार और सिंडिकेट के संगठित अपराध को ख़तम करेंगी। लेकिन जैसा की मीडिया रिपोर्ट्स से खबरें गाहे बगाहें आती रही की ममता बनर्जी सरकार ने वाम शासन से भी आगे जाकर संगठित अपराध को मुख्या धारा का हिस्सा बनाया और कट मनी ,टोलबाज़ी को ज़मीनी स्तर पर पहुँचाया। कहते है की वाम शासन में जो संगठित अपराध का हिस्सा थे वो पार्टी के पोलित ब्यूरो से दूर थे लेकिन ममता राज में वो सरकार का हिस्सा बने। जिसके खिलाफ ममता सत्ता में आयी उनको ही सत्ता का हिस्सा बनाया। कट मनी ,टोलबाज़ी ,सिंडिकेट अब आम लोगो के ज़िन्दगी के रोजमर्रा के ज़िन्दगी में भी असर डालने लगी है ऐसा बहुत से मीडिया रपटों में कहा जाता रहा है।

इसे भी पढ़ें: कोविड का खौफ करेगा होली के रंग को फीका?

एक बार फिर बंगाल में आम चुनाव है और सवाल ये की क्या ममता 11 साल की सत्त्ता के एंटी इंकम्बैंसी से पार पाएंगी या फिर भाजपा मोदी रथ पर सवार होकर सत्त्ता में आएगी। इस चुनाव में आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में मुख्य मुकाबला है जबकि वाम ,कांग्रेस और फुरफुरा सरीफ की पार्टी गठजोड़ मुकाबला को त्रिकोणीय बनाने में लगे है। इस चुनाव में बहुत बड़े पैमाने पर जातीय और धार्मिक ध्रुवीकरण देखने को भी मिल रहा है। २ मई को क्या होगा इसके साथ हम एक बार फिर आएंगे लेकिन 5 राज्यों में हो रहे चुनाव में सबसे दिलचस्प चुनाव बंगाल में हो रहा है और पूरे भारत की मीडिया की नज़र इस पर है। ट्रेंडिंग न्यूज़ के तरफ से हम हर चुनावी राज्य के नागरिक से अपील करते है की वो वोट ज़रूर डाले ये आपका अधिकार है और जिम्मेवारी भी। साथ ही कोरोना से जुड़े गाइडलाइन्स का भी पालन करते रहे। जय हिन्द जय भारत।