बिहार : बाढ़ और सूखाड़! उफ…यह दोहरी मार

by TrendingNews Desk
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इस साल बिहार की बाढ़ ने साल 2007 की त्रासदी की तस्वीरों को जिंदा कर दिया है। उस वक्त सबने देखा था कि बाढ़ की विनाशलीला में कैसे लाखों की आबादी दाने-दाने का मोहताज हो गई थी…?इस 10 साल बाद भी तस्वीरें कुछ खास नहीं बदलीं। जहां तलक नजर जाए वहां तक बाढ़ का वहीं खौफनाक मंजर,  हवा में मंडराते चौपर और नीचे उम्मीद और आंसूओं से भरी आंखों में टकटकी लगाए बेबस जनता। इस साल अब तक करीब 500 जिंदगियां भी इस ‘मौत की बाढ़’ में बह गई हैं। कइयों के घर टूटे, अपने छूटे और सपने बिखर गए। बिहार की शोक कही जाने वाली नदी कोसी के अलावा बागमती, बूढ़ी गंडक, ललबकिया, कमला बलान, भुतही बलान और नारायणी का जलग्रहण क्षेत्र नेपाल है। वहां बारिश से इन नदियों में लगभग हर साल बाढ़ आती है और भारी जानमाल का नुकसान होता है। यही हाल जीवनदायिनी माने जाने वाली नदी गंगा की भी है। अगर मध्य प्रदेश में अधिक बारिश हुई, तो इसका प्रभाव बेतवा और चंबल नदी से होते हुए गंगा पर पड़ता है। इससे बिहार अछूता नहीं रहता, लिहाजा डूबते बिहार के पास अब अपनी किस्मत पर सिर पटकने के अलावा कुछ भी नहीं बचा।

थोड़ी गनिमत यह है कि कि इस भयंकर त्रासदी ने पूरे देश की अंतरात्मा को झकझोरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाढ़ पीड़ितों के लिए सरकारी खजाना का मुंह खोल दिया है, सुपरस्टार आमिर खान ने पीड़ितों को मदद के लिए हाथ बढ़ाया है और कई अन्य संगठनों और लोगों ने भी निजी तौर पर प्रयास कर बाढ़ को राहत पहुंचाने की कोशिश की है। लेकिन इन सब के बीच इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह तबाही जितनी विशाल है यकीनन उसका आंकलन और हर पीड़ित को राहत पहुंचा पाना शायद ही मुमकिन हो सके। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यह लाख और करोड़ों रुपये इन पीड़ितों के जख्मों को हमेशा के लिए भर पाएंगे…?  जवाब सबको मालूम है। पर भी इससे जुड़े कई और अन्य सवालों की फेहरिस्तों पर यहां चर्चा करना इसलिए भी जरुरी है क्योंकि सवाल होंगे तभी तो जवाब पूछे जाएंगे। मसलन : क्या हर बरस बाढ़ का प्रकोप झेलना यहां लोगों की नियती बन गई है…? क्या हवाई दौरों के दौरान जब हमारे रहनुमा बेबस जनता को निहारते हैं तो इससे जनता को कुछ सुकून मिलता है…? अंग्रेजों से आजादी के इतने सालों बाद भी गरीब गरीबी से,  अशिक्षित अशिक्षा से और भूखे भूख से आजाद क्यों नहीं हो सके…? बाढ़ और तबाही का यह मंजर जब हर बरस लगना ही है तो क्यों ना इस दिशा में किये जा रहे तमाम सरकारी प्रयासों को जनता के साथ किया जा रहा फरेब या फिर छलावा कहा जाए…? बहरहाल हर साल यह बाढ़ क्यों आती है, कमी कहां है, जिम्मेदार कौन है…? शायद यह बात जनता अब अच्छी तरह से समझ चुकी है। आज चर्चा इन खामियों की नहीं बल्कि उस दर्द की करते हैं जो बिहार में बाढ़ और सूखाड़ दोनों ही रुपों में इस बार राज्य की जनता को मिली है।

बाढ़ की विभिषिका के बाद विंडबना यह है कि इस बार सूखाड़ भी राज्य के गरीब किसानों  को जख्म दे रही है। राज्य के 19 जिले सामान्य से ज्यादा बारिश की वजह से तर-बतर हैं तो कई जिलों में औसत बारिश नहीं होने की वजह से अन्नादाताओं की पेशानी पर बल पड़ गया है। कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पटना, अरवल, भोजपुर, मुंगेर, सीवान सहित कई ऐसे जिले हैं, जहां अभी तक सामान्य से 20 प्रतिशत से कम बारिश हुई है। मुंगेर व सीवान जिले में जहां सामान्य से 33 प्रतिशत कम बारिश हुई है, वहीं भोजपुर में सामान्य से 37 प्रतिशत कम बारिश हुई है। खगड़िया, लखीसराय, नालंदा, मुजफ्फरपुर, नवादा ऐसे जिले हैं, जहां बारिश का घाटा 10 प्रतिशत से अधिक है। गोपालगंज जिले के छह प्रखंडों की 47 पंचायतें बाढ़ से प्रभावित हैं, लेकिन विडंबना है कि इस जिले में अब तक सामान्य से सात प्रतिशत कम बारिश हुई है।  धान का कटोरा कहे जाने वाले भोजपुर में इस वर्ष अब तक सामान्य से 37 प्रतिशत कम बारिश हुई है।

मौसम की आंखमिचौली, कहीं बाढ़ तो कही सूखाड़। इन सब के बीच इस दोहरी त्रासदी के पीड़ित यह सोच रहे हैं कि उन्हें आखिर दगा दिये किसने…? मौसम ने या फिर सरकारी महकमे ने…? सोचना सबको होगा कि आखिर हमारे अन्नदाता कब तक सिर्फ दिलासों और दावों की घूंट पीकर अपना और अपने गरीब परिवार का पेट भरते रहेंगे।

निशांत नंदन की कलम से…