नफ़्ताली बने इजरायल के नए प्रधानमंत्री; 12 साल सत्ता में रहने के बाद नेतनह्यू की विदाई

by Shatakshi Gupta

इजरायल में गठबंधनदल ने रविवार को देश के सबसे लंबे समय तक प्रधान मंत्री रहे बेंजामिन नेतन्याहू को हटा दिया और देश की अशांत राजनीति में एक भूकंपीय बदलाव में एक नई सरकार का गठन किया। दक्षिणपंथी यहूदी राष्ट्रवादी और पूर्व तकनीकी करोड़पति, नफ़्ताली बेनेट को आठ-पार्टी ब्लॉक की कमान संभालनी थी।

8 पार्टियों की गठबंधन सरकार की कमान कट्टरपंथी माने जाने वाले नफ्ताली बेनेट संभालेंगे। वे फिलीस्तीन राज्य की विचारधारा को ही स्वीकार नहीं करते। खास बात यह है कि इस गठबंधन में पहली बार कोई अरब-मुस्लिम पार्टी (राम) भी शामिल है। दूसरी तरफ, बेंजामिन नेतन्याहू के 12 साल का कार्यकाल खत्म हो गया।

अपने दक्षिणपंथी समर्थकों द्वारा “किंगबीबी” के रूप में प्रिय और उनके आलोचकों द्वारा “अपराध मंत्री” के रूप में जाने जानेवाले नेतन्याहू लंबे समय से इजरायल की राजनीति में प्रमुख व्यक्ति रहे हैं।

नेतन्याहू पड़ सकते हैं कमज़ोर

नेतन्याहू, जो चल रहे मुकदमे में भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रहे हैं, जिसे उन्होंने एक साजिश के रूप में खारिज कर दिया, अपनी पीढ़ी के प्रमुख इज़राइली राजनेता रहे है।

उनके समर्थकों ने उन्हें इज़राइल के एक मजबूत रक्षक के रूप में सम्मानित किया है जो कट्टर दुश्मन ईरान पर सख्त रहा है, लेकिन पिछले साल कई अरब देशों के साथ ऐतिहासिक सामान्यीकरण सौदे उनपर भारी पड़ रहे थे।

शीर्ष पद से हटने के बाद नेतन्याहू को उनके कानूनी संकटों से और अधिक अवगत कराया जाएगा, क्योंकि यह उन्हें संसद के माध्यम से बुनियादी कानूनों में बदलाव करने के अवसर से वंचित करता है जो उन्हें प्रतिरक्षा प्रदान कर सकते हैं।

बेनेट की परेशानी

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इजराइली सियासत में अस्थिरता कई साल से दिख रही है। दो साल में चार बार चुनाव हुए, लेकिन किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। बेनेट प्रधानमंत्री भले ही बन गए हों और उन्होंने गठबंधन भी बना लिया हो, लेकिन उनकी सरकार को लेकर लोग बहुत आश्वस्त नहीं हैं। इसकी एक वजह है कि इस गठबंधन के पास बहुमत से सिर्फ एक सीट ही ज्यादा है। अगर किसी भी मुद्दे पर गठबंधन में मतभेद हुए तो नया चुनाव ही रास्ता बचेगा।

सरकार गिरने की वजह

दो साल में चार चुनावों के बाद भी किसी पार्टी को अपनी दम पर बहुमत नहीं मिला। संसद में कुल 120 सीटें हैं। बहुमत के लिए 61 सांसद चाहिए। लेकिन, मल्टी पार्टी सिस्टम की वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत पाना आसान नहीं होता। नेतन्याहू के साथ भी यही हुआ और किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाई।