ऐसे करें मां के प्रथम रुप ‘शैलपुत्री’ की अराधना…

by Mahima Bhatnagar

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते…

प्रथम रुप शैलपुत्री :

सुख, शान्ति एवम समृध्दि की मंगलमयी कामनाओं के साथ नवरात्र के महापर्व की आज से शुरुआत हो रही है। नवरात्र को लेकर देश भर में लोगों में उत्साह है। इस महापर्व के पहले दिन मां के प्रथम रुप शैलपुत्री की अराधना की जाती है। पुराणों के मुताबिक मां शैलपुत्री सौभाग्य की प्रतीक हैं। वही नवरात्र के पहले दिन कलश की स्थापना की जाती है। कलश की स्थापना शुभ मुहूर्त में किया जाता है। इस बार कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 3 मिनट से लेकर 8 बजकर 23 मिनट तक रहेगा। सनातन धर्म के अनुसार शुभ मुहूर्त  में किया गया कलश स्थापना पूजा को सफल बनाता है।

पूजा की विधि  :

नौ दिन चलने वाले इस पर्व में पहले दिन मॉ की पूजा शैल पुत्री के रुप में की जाती है। कथाओं के अनुसार पर्वतराज हिमालय के घर पैदा होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा।  पुराणों के अनुसार मॉ शैल पुत्री को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इन की सच्चे मन से पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ती होती है।

श्रद्धालुओं में उत्साह :

नवरात्र को लेकर राजधानी पटना समेत पूरे राज्य में लोगों के बीच गजब का उत्साह देखने को मिल रहा है। शहर के तमाम पूजा पंडाल सज-धज के तैयार हो गए है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में मां दूर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाती है। मां के भक्त नवरात्र के नौ दिनों तक उपवास रख कर मां की आराधना करते है। ऐसा माना जाता है नौ दिन तक मां के अलग-अलग रुपों की पूजा – अर्चना करने से माता की विशेष कृपा की प्राप्ति होती है।