आज है देवशयनी एकादशी, भूलकर भी ना करें यह काम

by Mahima Bhatnagar

नई दिल्ली। आज है देवशयनी एकादशी। इस एकादशी के साथ ही अगले 4 महीनों के लिए सभी मांगलिक कार्य रूक जाएंगे। पुराणों में लिखा है कि देवशयनी एकादशी से लेकर अगले चार महीने तक भगवान देवप्रबोधनी निद्रा में चले जाते हैं। हिंदू धर्म में मान्यता है कि जब देव सो जाते हैं तो कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।

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क्यों सो जाते हैं देव

वामन पुराण में बताया गया है कि, असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार जमा लिया था। राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे।

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इंद्र के मदद मांगने के बाद भगवान विष्‍णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी। पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया। अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें।

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भगवान विष्‍णु ने वामन अवतार में अपने तीन पग रखकर इंद्र देवता की चिंता तो दूर कर दी लेकिन साथ ही वह राजा बलि के दान धर्म से बहुत प्रसन्‍न थे। उन्‍होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि उनसे पाताल में उनके साथ बसने का वर मांग लिया। बलि की इच्‍छापूति के लिए भगवान को उनके साथ पाताल जाना पड़ा।

भगवान विष्‍णु के पाताल जाने के बाद सभी देवतागण और माता लक्ष्‍मी चिंता में पड़ गए। अपने पति को वापस लाने के लिए माता लक्ष्‍मी ने सूझबूझ के साथ पति धर्म निभाया। व‍ह गरीब स्‍त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्‍हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी और बदले में भगवान विष्‍णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया। एक तरफ भगवान विष्‍णु के सामने उनकी पत्‍नी लक्ष्‍मी और समस्‍त देवतागण थे और दूसरी तरफ वह बलि को भी निराश नहीं करना चाहते थे। उन्‍होंने राजा बलि को वरदान दिया कि वह आषाढ़ शुक्‍ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्‍ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में वास करेंगे। पाताल लोक में उनके रहने की इस अवधि को योगनिद्रा माना जाता है।उसके बाद कार्तिक मास में देवउठनी एकादशी के बाद भगवान नींद से जागते हैं और फिर सभी शुभ कार्यों का आरंभ होता है। पुराणों की एक अन्य कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने लंबे समय तक असुरों के साथ युद्ध किया जिससे वह थक गए थे। इस पर देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु अनंत शयन में चार महीने के लिए चले गए। इस समय देवताओं और ऋषियों ने इनकी पूजा अर्चना की। जिस दिन भगवान सोने गए उस दिन आषाढ़ मास की एकादशी तिथि थी। उस दिन से देवशयनी एकादशी व्रत पूजन की परंपरा शुरू हो गई।