क्या है गुप्तधाम की महिमा, शिव भगवान के वहां विराजने के पीछे की कहानी

by Mahima Bhatnagar

बिहार से झारखंड अलग होने के बाद जो बिहार बचा था उसमे कुछ गिने-चुने धर्म स्थानों में शुमार बाबा भोले नाथ का एक शिवलिंग बिहार के रोहतास जिला के चेनारी प्रखंड में गुप्ता धाम यानि गुप्तेश्वर धाम की मंदिर गुफा में स्थित भगवान शिव की महिमा की बखान प्राचीनकाल से ही होती आ रही है। कैमूर पहाडियों की प्राकृतिक सौन्दर्य से शोभित वादियों में स्थित इस गुफा में जलाभिषेक करने के बाद श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूरी हो जाती है।

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‘रोहतास के इतिहास’ सहित कई पुस्तकों के लेखक श्यामसुंदर तिवारी के अनुसार गुफा के नाचघर और घुड़दौड़ मैदान के बगल में स्थित पताल गंगा के पास दीवार पर उत्कीर्ण शिलालेख, जिसे श्रद्धालु ‘ब्रह्मा के लेख’ के नाम से जानते हैं, को पढ़ने से संभव है, इस गुफा के कई रहस्य खुल जाएं। नवरात्र में सासाराम के इस माँ ताराचण्डी मंदिर में लगती है भक्तों की भीड़।

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भस्मासुर से छुपने के लिए आए थे गुप्तधाम

प्राचीन कथाओ के अनुसार एक बार भस्मासुर ने भगवान् भोलेनाथ की तपश्या कर रहा था, भोले नाथ को प्रशन करने के लिए कठिन तपस्या कर रहा था, भस्मासुर के तपस्या को देखकर भगवान् शिव प्रशन हो गए। भगवान् शिव बड़े धयालू है वो अपने भक्त की हर इच्छा को पूरा करते है, इसीलिए भोलेनाथ ने भस्मासुर से कहा की हम तुम्हरी  तपश्या से खुश है तुम हमसे कोई भी वरदान मांग सकते हो यह सुनकर भस्मासुर ने कहा की प्रभु हमें ऐसा वरदान दीजिये की जिस किसी के सिर पर हाथ रखे वो तुरंत भष्म हो जाये भोले नाथ ने कहा तथास्तु। कैमूर जिला में स्थित हरसू ब्रह्म के दर्शन करने से भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती।

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भस्मासुर मां पार्वती के सौंदर्य पर मोहित होकर शिव से मिले वरदान की परीक्षा लेने उन्हीं के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। जहां से भाग कर भगवान शिव यहीं की गुफा के गुप्त स्थान में छुपे थे। भगवान विष्णु से शिव की यह विवशता देखी नहीं गयी और उन्होंने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर का नाश किया। उसके बाद गुफा के अंदर छुपे भोलेदानी बाहर निकले।

पौराणिक आख्यानों में वर्णित भगवान शंकर और भस्मासुर से जुड़ी कथा को जीवंत रखे हुए ऐतिहासिक गुप्तेश्वरनाथ महादेव का गुफा मंदिर आज भी रहस्यमय बना हुआ है। देवघर के बाबाधाम की तरह गुप्तेश्वरनाथ यानी ‘गुप्ताधाम ’ श्रद्धालुओं में काफी लोकप्रिय है। यहां बक्सर से गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा है।

सावन महीना में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल से हजारों शिवभक्त यहां आकर जलाभिषेक करते हैं। बक्सर से गंगाजल लेकर गुप्ता धाम पहुंचने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है। लोग बताते हैं कि विख्यात उपन्यासकार देवकी नंदन खत्री ने अपने चर्चित उपन्यास ‘चंद्रकांता’ में विंध्य पर्वत श्रृंखला की जिन तिलस्मी गुफाओं का जिक्र किया है, संभवत: उन्हीं गुफाओं में गुप्ताधाम की यह रहस्यमयी गुफा भी है. वहां धर्मशाला और कुछ कमरे अवश्य बने हैं, परंतु अधिकांश जर्जर हो चुके हैं।